Wednesday 6 August 2014

अपनी भूलें या प्रवंचानाए औरों की

जब कभी पीछे मुड़कर अपने अतीत को झाँकने की कोशिश करती हूँ .................अपनी मूर्खताओं पर अफ़सोस से ज्यादा ग्लानी होती है , लगता है क्या ये सामान्य गलतियाँ है या फिर बार बार की जाने वाली बेव्कूफियां लोगो पर विश्वास करने की बेवकूफी , दूसरों को ज्यादा मदद देने की गलती , जाने अनजाने ज्यादा बोलने की गलती ,गलतियाँ ही गलतीयां और सुधारने की सारी कोशिशे बेकार ,हर बार आपने आप से एक जंग , हर बार कसमें वादे वचनों की लम्बी तकरीरें और फिर उसी खाई में जा गिरना , क्या ये इंसानी फितरत है या फिर मेरी ही आदत है एक लम्बी तलाश एक ज़द्दोज़हद , 

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